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शेर
प्यार के बंधन ख़ून के रिश्ते टूट गए ख़्वाबों की तरह
जागती आँखें देख रही थीं क्या क्या कारोबार हुए
बशर नवाज़
शेर
कैसे रिश्ते कैसे नाते झूटे सारे बंधन हैं
चाहत जाने क़ैद है कब से नफ़रत के तह-ख़ानों में
गुलनार आफ़रीन
शेर
जिस क़दर नफ़रत बढ़ाई उतनी ही क़ुर्बत बढ़ी
अब जो महफ़िल में नहीं है वो तुम्हारे दिल में है
आरज़ू लखनवी
शेर
बुलबुल से कहा गुल ने कर तर्क मुलाक़ातें
ग़ुंचे ने गिरह बाँधीं जो गुल ने कहीं बातें