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शेर
हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मिरे दिल पर
'वसी' मैं जब भी हँसता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
शेर
भाग चलूँ यादों के ज़िंदाँ से अक्सर सोचा लेकिन
जब भी क़स्द किया तो देखा ऊँची है दीवार बहुत
वहीद अर्शी
शेर
हर इक मुफ़लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
कोई चेहरा भी पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
शेर
आँखें यूँ ही भीग गईं क्या देख रहे हो आँखों में
बैठो साहब कहो सुनो कुछ मिले हो कितने साल के बाद