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शेर
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
उसे हम पर तो देते हैं मगर उड़ने नहीं देते
हमारी बेटी बुलबुल है मगर पिंजरे में रहती है
रहमान मुसव्विर
शेर
जिसे सय्याद ने कुछ गुल ने कुछ बुलबुल ने कुछ समझा
चमन में कितनी मानी-ख़ेज़ थी इक ख़ामुशी मिरी
जिगर मुरादाबादी
शेर
बुलबुल से कहा गुल ने कर तर्क मुलाक़ातें
ग़ुंचे ने गिरह बाँधीं जो गुल ने कहीं बातें
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
शेर
चमन-ज़ार-ए-मोहब्ब्बत में ख़मोशी मौत है बुलबुल
यहाँ की ज़िंदगी पाबंदी-ए-रस्म-ए-फ़ुग़ाँ तक है
अल्लामा इक़बाल
शेर
सिया है ज़ख़्म-ए-बुलबुल गुल ने ख़ार और बू-ए-गुलशन से
सूई तागा हमारे चाक-ए-दिल का है कहाँ देखें
वली उज़लत
शेर
शिकवा सय्याद का बेजा है क़फ़स में बुलबुल
याँ तुझे आप तिरा तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ लाया है