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शेर
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा
मैं सज्दे में नहीं था आप को धोका हुआ होगा
दुष्यंत कुमार
शेर
जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-क़रार कहाँ रहा
अदा जाफ़री
शेर
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे
बशीर बद्र
शेर
सलीक़ा जिन को होता है ग़म-ए-दौराँ में जीने का
वो यूँ शीशे को हर पत्थर से टकराया नहीं करते