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शेर
लगाए पीठ बैठी सोचती रहती थी मैं जिस से
वही दीवार लफ़्ज़ों की अचानक आ रही मुझ पर
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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लगाए पीठ बैठी सोचती रहती थी मैं जिस से
वही दीवार लफ़्ज़ों की अचानक आ रही मुझ पर
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