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शेर
हाल-ए-दिल क्यूँ कर करें अपना बयाँ अच्छी तरह
रू-ब-रू उन के नहीं चलती ज़बाँ अच्छी तरह
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना
मुझे तो होश दे इतना रहूँ मैं तुझ पे दीवाना
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
बनाया ऐ 'ज़फ़र' ख़ालिक़ ने कब इंसान से बेहतर
मलक को देव को जिन को परी को हूर ओ ग़िल्माँ को
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
मैं सिसकता रह गया और मर गए फ़रहाद ओ क़ैस
क्या उन्ही दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी मैं न था
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
फ़रहाद ओ क़ैस ओ वामिक़ ओ अज़रा थे चार दोस्त
अब हम भी आ मिले तो हुए मिल के चार पाँच
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था
लाएक़-ए-पाबोस-ए-जानाँ क्या हिना थी मैं न था
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
बुत-परस्ती जिस से होवे हक़-परस्ती ऐ 'ज़फ़र'
क्या कहूँ तुझ से कि वो तर्ज़-ए-परस्तिश और है
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
घर है अल्लाह का ये इस की तो तामीर न तोड़