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शेर
बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला
दो फ़रंगी सैर को निकले हैं मुल्क-ए-शाम से
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
ग़म-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ से बे-नियाज़ाना निकलता है
बड़ी फ़र्ज़ानगी से तेरा दीवाना निकलता है
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
शेर
ऐ ख़िरद-मंदो मुबारक हो तुम्हें फ़र्ज़ानगी
हम हों और सहरा हो और हैरत हो और दीवानगी
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
है ये फ़लक-ए-सिफ़्ला वो फीका सा फ़रंगी
रखता है मह ओ ख़ुर से जो पास अपने दो बिस्कुट