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शेर
मुझ से ये पूछ रहे हैं मिरे अहबाब 'अज़ीज़'
क्या मिला शहर-ए-सुख़न में तुम्हें शोहरत के सिवा
अज़ीज़ वारसी
शेर
मोहब्बत लफ़्ज़ तो सादा सा है लेकिन 'अज़ीज़' इस को
मता-ए-दिल समझते थे मता-ए-दिल समझते हैं
अज़ीज़ वारसी
शेर
उठो 'अज़्म' इस आतिश-ए-शौक़ को सर्द होने से रोको
अगर रुक न पाए तो कोशिश ये करना धुआँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद
शेर
तह में दरिया-ए-मोहब्बत के थी क्या चीज़ 'अज़ीज़'
जो कोई डूब गया उस को उभरने न दिया
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
हमारा मुल्क अगर क़र्ज़े में जकड़ा है तो क्या हैरत
हमारे मुल्क का तो इक वज़ीर-ए-आज़म उधारा था
सय्यद ज़मीर जाफ़री
शेर
मुट्ठी में क्या धरी थी कि चुपके से सौंप दी
जान-ए-अज़ीज़ पेशकश-ए-नामा-बर ग़लत
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
मातम में फ़ौत-ए-उम्र के रोता हूँ रात दिन
दुनिया में मुझ सा कम है कोई सोगवार शख़्स