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शेर
जिन्हें अब गर्दिश-ए-अफ़्लाक पैदा कर नहीं सकती
कुछ ऐसी हस्तियाँ भी दफ़्न हैं गोर-ए-ग़रीबाँ में
मख़मूर देहलवी
शेर
है ख़याल-ए-हुस्न में हुस्न-ए-अमल का सा ख़याल
ख़ुल्द का इक दर है मेरी गोर के अंदर खुला
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
उदासी अब किसी का रंग जमने ही नहीं देती
कहाँ तक फूल बरसाए कोई गोर-ए-ग़रीबाँ पर
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
दर्द घनेरा हिज्र का सहरा घोर अंधेरा और यादें
राम निकाल ये सारे रावन मेरी राम कहानी से
सय्यद सरोश आसिफ़
शेर
सबक़ आ के गोर-ए-ग़रीबाँ से ले लो
ख़मोशी मुदर्रिस है इस अंजुमन में
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
वो जो लैला है मिरे दिल में सुने उस का जो शोर
क़ैस निकले गोर से बाहर कफ़न को चीर-फाड़
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
शमएँ अफ़्सुर्दा जहाँ फूल हैं पज़मुर्दा जहाँ
दिल को उस गोर-ए-ग़रीबाँ में पुकारा होता
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
साहिबान-ए-क़स्र को मिलती नहीं है ब'अद-ए-मर्ग
गोर में सर के तले तकिया की जागा एक ख़िश्त