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शेर
रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं
चराग़ जल रहा है और कोई मकान में नहीं
ग़ुलाम हुसैन साजिद
शेर
हर इश्क़ के मंज़र में था इक हिज्र का मंज़र
इक वस्ल का मंज़र किसी मंज़र में नहीं था
अक़ील अब्बास जाफ़री
शेर
जिस को हम ने चाहा था वो कहीं नहीं इस मंज़र में
जिस ने हम को प्यार किया वो सामने वाली मूरत है
ऐतबार साजिद
शेर
कटी है जिस के ख़यालों में उम्र अपनी 'मुनीर'
मज़ा तो जब है कि उस शोख़ को पता ही न हो
मुनीर नियाज़ी
शेर
इश्क़ है जी का ज़ियाँ इश्क़ में रक्खा क्या है
दिल-ए-बर्बाद बता तेरी तमन्ना क्या है
जुनैद हज़ीं लारी
शेर
शाद आरफ़ी
शेर
निगाह ओ दिल में वही कर्बला का मंज़र था
मैं तिश्ना-लब थी मिरे सामने समुंदर था