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शेर
हम-नफ़स ख़्वाब-ए-जुनूँ की कोई ता'बीर न देख
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
अब्दुल मतीन नियाज़
शेर
उल्फ़त-ए-सय्याद से मजबूर हूँ ऐ हम-नफ़स
वर्ना अब भी बाज़ुओं में क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ है
सब्र कलकत्तवी
शेर
रफ़्ता रफ़्ता इश्क़ मानूस-ए-जहाँ होने लगा
ख़ुद को तेरे हिज्र में तन्हा समझ बैठे थे हम
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
दिन को है सहरा-नवर्दी से हमें काम ऐ रफ़ीक़
शब को बिस्तर पर पड़े रहते हैं मन मारे हुए
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
बताऊँ क्या तुझे ऐ हम-नशीं किस से मोहब्बत है
मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो इस दुनिया की औरत है