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शेर
तू जो मूसा हो तो उस का हर तरफ़ दीदार है
सब अयाँ है क्या तजल्ली को यहाँ तकरार है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
हर इक फ़िक़रे पे है झिड़की तो है हर बात पर गाली
तुम ऐसे ख़ूबसूरत हो के इतने बद-ज़बाँ क्यूँ हो
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
शेर
रात को आ कर जो तुम मिलते तो हाँ इक बात थी
सुब्ह को सूरत दिखाने आफ़्ताब आया तो क्या
जलील मानिकपूरी
शेर
मुझे अब देखती है ज़िंदगी यूँ बे-नियाज़ाना
कि जैसे पूछती हो कौन हो तुम जुस्तुजू क्या है
अख़्तर सईद ख़ान
शेर
तुम्हें समझाएँ तो क्या हम कि शैख़-ए-वक़्त हो माइल
तुम अपने आप को देखो और इक तिफ़्ल-ए-बरहमन को
मिर्ज़ा मायल देहलवी
शेर
अगर मौजें डुबो देतीं तो कुछ तस्कीन हो जाती
किनारों ने डुबोया है मुझे इस बात का ग़म है
दिवाकर राही
शेर
मुझ को काफ़ी है बस इक तेरा मुआफ़िक़ होना
सारी दुनिया भी मुख़ालिफ़ हो तो क्या होता है