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शेर
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
मुनव्वर राना
शेर
मुसव्विर सब्ज़वारी
शेर
शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी तस्वीर के पास
सारी ग़ज़लें बैठी होंगी अपने अपने मीर के पास
साग़र आज़मी
शेर
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
नए सफ़र की लज़्ज़तों से जिस्म ओ जाँ को सर करो
सफ़र में होंगी बरकतें सफ़र करो सफ़र करो
महताब हैदर नक़वी
शेर
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा