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शेर
बहार आई है और मेरी निगाहें काँप उट्ठीं हैं
यही तेवर थे मौसम के जब उजड़ा था चमन अपना
जगन्नाथ आज़ाद
शेर
बहार आते ही टकराने लगे क्यूँ साग़र ओ मीना
बता ऐ पीर-ए-मय-ख़ाना ये मय-ख़ानों पे क्या गुज़री
जगन्नाथ आज़ाद
शेर
अस्ल में हम थे तुम्हारे साथ महव-ए-गुफ़्तुगू
जब ख़ुद अपने आप से हम गुफ़्तुगू करते रहे