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शेर
अपनी ना-फ़हमी से मैं और न कुछ कर बैठूँ
इस तरह से तुम्हें जाएज़ नहीं एजाज़ से रम्ज़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
गर ज़माने की अदावत है यही मुझ से तो मैं
अभी रो रो के जहाज़ उस का डुबो देता हूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
जब दिल का जहाज़ अपना तबाही में पड़े है
ले दौड़ें हैं आँसू वहीं आँखों की ग़राबें