aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ka.iin"
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदालड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
कौन इस घर की देख-भाल करेरोज़ इक चीज़ टूट जाती है
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलताकहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमीजिस को भी देखना हो कई बार देखना
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइलजब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
आज देखा है तुझ को देर के बअ'दआज का दिन गुज़र न जाए कहीं
ज़िंदगी शायद इसी का नाम हैदूरियाँ मजबूरियाँ तन्हाइयाँ
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदासदिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्तसब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हमठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
आरज़ू है कि तू यहाँ आएऔर फिर उम्र भर न जाए कहीं
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तककौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक करआदत इस की भी आदमी सी है
इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँकहीं ऐसा न हो जाए कहीं ऐसा न हो जाए
पूछते हैं वो कि 'ग़ालिब' कौन हैकोई बतलाओ कि हम बतलाएँ क्या
दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिलेहम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगेकम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गईआओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई
क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दोख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो
मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना थादिल भी या-रब कई दिए होते
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