aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ka.ngtii"
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँपहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती हैमाँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखाकश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा
ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम करआस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्याकहती है तुझ को ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ग़ाएबाना क्या
सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैंमैं ने कश्ती को उतारा है उसी पानी में
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल हैदिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दोजब आग भेज दी है तो पानी भी भेज दो
मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूँमिरे हमराह दरिया जा रहा है
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरामैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समुंदर मेरा
तू ने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँआँखों को अब न ढाँप मुझे डूबते भी देख
आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काममजनूँ को बुरा कहती है लैला मिरे आगे
तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनियाबचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैं
अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देखइक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है
प्यास कहती है चलो रेत निचोड़ी जाएअपने हिस्से में समुंदर नहीं आने वाला
मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईंशेर कहती हुई आँखें उस की
अक़्ल ये कहती है दुनिया मिलती है बाज़ार मेंदिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए
अपना कंगन समझ रहे हो क्याऔर कितना घुमाओगे मुझ को
हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही सेहर साँस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है
दरिया के तलातुम से तो बच सकती है कश्तीकश्ती में तलातुम हो तो साहिल न मिलेगा
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