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शेर
कुछ शेर-ओ-शायरी से नहीं मुझ को फ़ाएदा
इल्ला हुसूल-ए-काविश-ए-बे-जा-ए-ख़ल्क़ है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दोनों हों कैसे एक जा 'मेहदी' सुरूर-ओ-सोज़-ए-दिल
बर्क़-ए-निगाह-ए-नाज़ ने गिर के बता दिया कि यूँ