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शेर
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिए
जो शीश-महल में बैठे हुए मज़दूर की बातें करते हैं
ओबैदुर रहमान
शेर
उन का इक पतला सा ख़ंजर उन का इक नाज़ुक सा हाथ
वो तो ये कहिए मिरी गर्दन ख़ुशी में कट गई