aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "khaake"
हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिनऐ ख़ाक-ए-वतन क़र्ज़ अदा क्यूँ नहीं होता
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँमहँगाई के मौसम में ये त्यौहार पड़ा है
हम भी तिरे बेटे हैं ज़रा देख हमें भीऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से शिकायत नहीं करते
वो हज़ार दुश्मन-ए-जाँ सही मुझे फिर भी ग़ैर अज़ीज़ हैजिसे ख़ाक-ए-पा तिरी छू गई वो बुरा भी हो तो बुरा नहीं
सफ़र सफ़र मिरे क़दमों से जगमगाया हुआतरफ़ तरफ़ है मिरी ख़ाक-ए-जुस्तुजू रौशन
ऐ ख़ाक-ए-वतन अब तो वफ़ाओं का सिला देमैं टूटती साँसों की फ़सीलों पे खड़ा हूँ
ख़ाकसारी के लिए गरचे बनाया था मुझेकाश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाना बनाया होता
दौलत-ए-ग़म भी ख़स-ओ-ख़ाक-ए-ज़माना में गईतुम गए हो तो मह ओ साल कहाँ ठहरे हैं
एहसान ख़ाक-ए-सहरा पे मजनूँ का है बहुतवर्ना फ़लक पे उस का पहुँचना मुहाल था
अम्न और तेरे अहद में ज़ालिमकिस तरह ख़ाक-ए-रहगुज़र बैठे
ख़ाक-ए-बदन तिरी सब पामाल होगी इक दिनरेग-ए-रवाँ बनेगा आख़िर को ये जज़ीरा
नशेमन फूँकने वाले हमारी ज़िंदगी ये हैकभी रोए कभी सज्दे किए ख़ाक-ए-नशेमन पर
हम दो क़दम भी चल न सके ख़ाक-ए-पा हुएजो क़ाफ़िले के साथ गए जाने क्या हुए
मिरे लहू को मिरी ख़ाक-ए-नागुज़ीर को देखयूँही सलीक़ा-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं आया
ख़ाक-ए-'शिबली' से ख़मीर अपना भी उट्ठा है 'फ़ज़ा'नाम उर्दू का हुआ है इसी घर से ऊँचा
मेराज-ए-अक़ीदत है कि ता'वीज़ की सूरतबाज़ू पे कोई ख़ाक-ए-वतन बाँधे हुए है
उम्र भर छानी है इन हाथों से ख़ाक-ए-मय-कदाहाथ अब आए हैं कुछ आदाब-ए-मय-ख़ाना हमें
जो फूल झड़ गए थे जो आँसू बिखर गएख़ाक-ए-चमन से उन का पता पूछता रहा
ख़ाक-ए-सहरा-ए-जुनूँ नर्म है रेशम की तरहआबला है न कोई आबला-पा मेरे ब'अद
मिरी बेबसी पे न मुस्कुरा ये बजा कि मैं तिरी ख़ाक-ए-पाजो हिला के रख दे फ़लक को भी वो असर है अब मिरी आह में
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