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शेर
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने
साहिर लुधियानवी
शेर
गर हो शराब ओ ख़ल्वत ओ महबूब-ए-ख़ूब-रू
ज़ाहिद क़सम है तुझ को जो तू हो तो क्या करे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
तेरा ख़याल ख़्वाब ख़्वाब ख़ल्वत-ए-जाँ की आब-ओ-ताब
जिस्म-ए-जमील-ओ-नौजवाँ शाम-ब-ख़ैर शब-ब-ख़ैर
जौन एलिया
शेर
दिल समझता था कि ख़ल्वत में वो तन्हा होंगे
मैं ने पर्दा जो उठाया तो क़यामत निकली
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
या-रब कभी वो दिन हो कि ख़ल्वत में वो सनम
खुलवाए अपने बंद-ए-क़बा मेरे हाथ से
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मैं अपनी मौत से ख़ल्वत में मिलना चाहता हूँ
सो मेरी नाव में बस मैं हूँ नाख़ुदा नहीं है