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शेर
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
शेर
महफ़िल-ए-कौन-ओ-मकाँ तेरी ही बज़्म-ए-नाज़ है
हम कहाँ जाएँगे इस महफ़िल से उठ जाने के बा'द
फ़िगार उन्नावी
शेर
जल्वा-ए-यार देख कर तूर पे ग़श हुए कलीम
अक़्ल-ओ-ख़िरद का काम क्या महफ़िल-ए-हुस्न-ओ-नाज़ में
अनवर सहारनपुरी
शेर
गर हो शराब ओ ख़ल्वत ओ महबूब-ए-ख़ूब-रू
ज़ाहिद क़सम है तुझ को जो तू हो तो क्या करे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
ग़ैर से दूर मगर उस की निगाहों के क़रीं
महफ़िल-ए-यार में इस ढब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
शेर
कैफ़ियत महफ़िल-ए-ख़ूबाँ की न उस बिन पूछो
उस को देखूँ न तो फिर दे मुझे दिखलाई क्या
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
सुनता हूँ न कानों से न कुछ मुँह से हूँ बकता
ख़ाली है जगह महफ़िल-ए-तस्वीर में मेरी