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शेर
अभी आते नहीं उस रिंद को आदाब-ए-मय-ख़ाना
जो अपनी तिश्नगी को फ़ैज़-ए-साक़ी की कमी समझे
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इशरत-ए-शबाना
मुईन अहसन जज़्बी
शेर
सुराही-ए-मय-ए-नाब-ओ-सफीना-हा-ए-ग़ज़ल
ये हर्फ़-ए-हुस्न-ए-मुक़द्दर लिखा है किस के लिए
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
पीरी में 'रियाज़' अब भी जवानी के मज़े हैं
ये रीश-ए-सफ़ेद और मय-ए-होश-रुबा सुर्ख़
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
तिश्ना-लबी रहीन-ए-मय-ए-तल्ख़ है तो क्या
शीरीनी-ए-हयात की लज़्ज़त कहाँ से लाएँ
ताबिश हमदून उस्मानी
शेर
मैं कहाँ हूँ कुछ बता दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!
फिर सदा अपनी सुना दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
शेर
गुल खिलाए न कहीं फ़ित्ना-ए-दौराँ कुछ और
आज-कल दौर-ए-मय-ओ-जाम से जी डरता है