aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "manzil"
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगरलोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िलकोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सहीनहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों मेंनज़र आती है उन को अपनी मंज़िल आसमानों में
ढूँडता फिरता हूँ मैं 'इक़बाल' अपने आप कोआप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं
वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा थाकि वो तो याद हमें भूल कर भी आता है
याद आई है तो फिर टूट के याद आई हैकोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त
कल सामने मंज़िल थी पीछे मिरी आवाज़ेंचलता तो बिछड़ जाता रुकता तो सफ़र जाता
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र हैआँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
शुक्रिया ऐ क़ब्र तक पहुँचाने वालो शुक्रियाअब अकेले ही चले जाएँगे इस मंज़िल से हम
अपनी मंज़िल पे पहुँचना भी खड़े रहना भीकितना मुश्किल है बड़े हो के बड़े रहना भी
'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िलहम जहाँ पहुँचे कामयाब आए
कोई मंज़िल के क़रीब आ के भटक जाता हैकोई मंज़िल पे पहुँचता है भटक जाने से
सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ मेंमंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही
मिलेगा मंज़िल-ए-मक़्सूद का उसी को सुराग़अँधेरी शब में है चीते की आँख जिस का चराग़
बढ़ते चले गए जो वो मंज़िल को पा गएमैं पत्थरों से पाँव बचाने में रह गया
ख़ुद पुकारेगी जो मंज़िल तो ठहर जाऊँगावर्ना ख़ुद्दार मुसाफ़िर हूँ गुज़र जाऊँगा
ठोकर किसी पत्थर से अगर खाई है मैं नेमंज़िल का निशाँ भी उसी पत्थर से मिला है
कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुतचलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे
चले चलिए कि चलना ही दलील-ए-कामरानी हैजो थक कर बैठ जाते हैं वो मंज़िल पा नहीं सकते
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