aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mayassar"
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सहीनहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने मेंजितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ीउस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिएकहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचलमुद्दतों ब'अद हमें नींद सुहानी आई
कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होतीहम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती
अधूरी छोड़ के तस्वीर मर गया वो 'ज़ेब'कोई भी रंग मयस्सर न था लहू के सिवा
जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनीबहम हुए तो पड़ी हैं जुदाइयाँ क्या क्या
नींद आएगी भला कैसे उसे शाम के बा'दरोटियाँ भी न मयस्सर हों जिसे काम के बा'द
मंज़िल पे भी पहुँच के मयस्सर नहीं सकूँमजबूर इस क़दर हैं शुऊर-ए-सफ़र से हम
आज क्या लौटते लम्हात मयस्सर आएयाद तुम अपनी इनायात से बढ़ कर आए
पयाम-बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते
जिस को ख़ुश रहने के सामान मयस्सर सब होंउस को ख़ुश रहना भी आए ये ज़रूरी तो नहीं
ज़रा जो फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारगी मयस्सर होतो एक पल में भी क्या क्या है देखने के लिए
गुलशन से कोई फूल मयस्सर न जब हुआतितली ने राखी बाँध दी काँटे की नोक पर
सादगी देख कि बोसे की तमअ रखता हूँजिन लबों से कि मयस्सर नहीं दुश्नाम मुझे
क्या क्या फ़राग़तें थीं मयस्सर हयात कोवो दिन भी थे कि तेरे सिवा कोई ग़म न था
मयस्सर मुफ़्त में थे आसमाँ के चाँद तारे तकज़मीं के हर खिलौने की मगर क़ीमत ज़ियादा थी
शायद तुम्हारी दीद मयस्सर न हो कभीआओ कि तुम को देख लें फ़ुर्सत से आज हम
मैं उन सब में इक इम्तियाज़ी निशाँ हूँ फ़लक पर नुमायाँ हैं जितने सितारे'क़मर' बज़्म-ए-अंजुम की मुझ को मयस्सर सदारत नहीं है तो फिर और क्या है
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