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शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
दिलों का ज़िक्र ही क्या है मिलें मिलें न मिलें
नज़र मिलाओ नज़र से नज़र की बात करो
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
शेर
जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
यही लड़के मिटाते हैं जवानी को जवाँ हो कर
अकबर इलाहाबादी
शेर
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें
हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तिरा
इब्न-ए-इंशा
शेर
ऐतबार साजिद
शेर
मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है
कि ख़ून-ए-दिल में डुबो ली हैं उँगलियाँ मैं ने