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शेर
हम तो उस के ज़ेहन की उर्यानियों पर मर मिटे
दाद अगरचे दे रहे हैं जिस्म और पोशाक पर
नवीन सी. चतुर्वेदी
शेर
छुपाने से छुपे कब हैं मिटाने से मिटे कब हैं
पड़े हैं ख़ून-ए-नाहक़ के जो धब्बे तेरे दामाँ पर
फ़हीम हैरत रहीमी
शेर
मस्जिद मंदिर के झगड़े तो होते मिटते रहते हैं
दफ़्न हैं जिस में दिल के रिश्ते उस मलबे की बात करें
सय्यद रियाज़ रहीम
शेर
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले