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शेर
हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा
मज़मून-ए-क़ुम ए'जाज़-ए-लब-ए-नान-ए-जवीं था
अहमद हुसैन माइल
शेर
न हो एहसास तो सारा जहाँ है बे-हिस-ओ-मुर्दा
गुदाज़-ए-दिल हो तो दुखती रगें मिलती हैं पत्थर में
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
अफ़्सुर्दा-दिल के वास्ते क्या चाँदनी का लुत्फ़
लिपटा पड़ा है मुर्दा सा गोया कफ़न के साथ
क़द्र बिलग्रामी
शेर
अजीब कश्मकश है कैसे हर्फ़-ए-मुद्दआ कहूँ
वो पूछते हैं हाल-ए-दिल मैं सोचता हूँ क्या कहूँ
फ़िगार उन्नावी
शेर
ग़ज़ब है मुद्दई जो हो वही फिर मुद्दआ' ठहरे
जो अपना दुश्मन-ए-दिल हो वही दिल की दवा ठहरे
शिव नारायण आराम
शेर
क्या जानिए किस किस को मैं याँ दी है अज़िय्यत
मुर्दा भी जो पहलू में सुलाता नहीं मुझ को