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शेर
अपनी मिट्टी है कहाँ की क्या ख़बर बाद-ए-सबा
हो परेशाँ देखिए किस किस जगह मुश्त-ए-ग़ुबार
सुरूर जहानाबादी
शेर
तुफ़ैल-ए-रूह मिरा जिस्म-ए-ज़ार बाक़ी है
हुआ के दम से ये मुश्त-ए-ग़ुबार बाक़ी है
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
शायद मिज़ाज हम से मुकद्दर है यार का
लिक्खा है उस ने हम को ब-ख़्त्त-ए-ग़ुबार ख़त
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
शेर
जौन एलिया
शेर
जब चाहे तू जला दे मिरे मुश्त-ए-उस्तुख़्वाँ
किस दिन कहा मैं ऐ नफ़स-ए-आतिशीं नहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
आदमी क्या वो न समझे जो सुख़न की क़द्र को
नुत्क़ ने हैवाँ से मुश्त-ए-ख़ाक को इंसाँ किया
हैदर अली आतिश
शेर
माना कि मुश्त-ए-ख़ाक से बढ़ कर नहीं हूँ मैं
लेकिन हवा के रहम-ओ-करम पर नहीं हूँ मैं