aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "nikaltii"
दिल से जो बात निकलती है असर रखती हैपर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल न चाहने पर भीतिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है
हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिलदुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है
सच तो कह दूँ मगर इस दौर के इंसानों कोबात जो दिल से निकलती है बुरी लगती है
उस से मिले ज़माना हुआ लेकिन आज भीदिल से दुआ निकलती है ख़ुश हो जहाँ भी हो
हर एक आँख में होती है मुंतज़िर कोई आँखहर एक दिल में कहीं कुछ जगह निकलती है
सूरत-ए-वस्ल निकलती किसी तदबीर के साथमेरी तस्वीर ही खिंचती तिरी तस्वीर के साथ
मैं अपने जिस्म की सरगोशियों को सुनता हूँतिरे विसाल की साअ'त निकलती जाती है
किसी की तमन्ना निकलती रहीमिरी आरज़ू हाथ मलती रही
क्या बैठना क्या उठना क्या बोलना क्या हँसनाहर आन में काफ़िर की इक आन निकलती है
मिलती है ख़ुशी सब को जैसे ही कहीं से भीभूली हुइ बचपन की तस्वीर निकलती है
सफ़र का ख़ात्मा होता नहीं कहीं अपनाहर इक पड़ाव से इक इब्तिदा निकलती है
तुम्हारी याद निकलती नहीं मिरे दिल सेनशा छलकता नहीं है शराब से बाहर
मेरी क़िस्मत है ये आवारा-ख़िरामी 'साजिद'दश्त को राह निकलती है न घर आता है
तुम भूल गए मुझ को यूँ याद दिलाता हूँजो आह निकलती है वो याद-दहानी है
सुलूक ऐसा नहीं उस का फिर भी जाने क्योंवो याद आए तो दिल से दुआ निकलती है
किसी के रास्ते की ख़ाक में पड़े हैं 'ज़फ़र'मता-ए-उम्र यही आजिज़ी निकलती है
तासीर हो क्या ख़ाक जो बातों में घड़त होकुछ बात निकलती है तो बे-साख़्ता-पन में
जो ज़मीं कूचा-ए-क़ातिल में निकलती है नईवक़्फ़ वो बहर-ए-मज़ार-ए-शोहदा होती है
सिंदूर उस की माँग में देता है यूँ बहारजैसे धनक निकलती है अब्र-ए-सियाह में
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