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शेर
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
अल्लामा इक़बाल
शेर
ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें
अल्लामा इक़बाल
शेर
पैदा वो बात कर कि तुझे रोएँ दूसरे
रोना ख़ुद अपने हाल पे ये ज़ार ज़ार क्या
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
दर्द-ए-दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को
वर्ना ताअत के लिए कुछ कम न थे कर्र-ओ-बयाँ