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शेर
दयार-ए-इश्क़ आया कुफ़्र-ओ-ईमाँ की हदें छूटीं
यहीं से और पैदा कर ख़ुदा ओ अहरमन कोई
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
ये ज़मज़मा तुयूर-ए-ख़ुश-आहंग का नहीं
है नग़्मा-संज बुलबुल-ए-रंगीं-नवा-ए-क़ल्ब
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
शेर
ज़ात के पर्दे से बाहर आ के भी तन्हा रहूँ
मैं अगर हूँ अजनबी तो मेरे घर में कौन है
अमीन राहत चुग़ताई
शेर
सुब्ह गर सुब्ह-ए-क़यामत हो तो कुछ पर्वा नहीं
हिज्र की जब रात ऐसी बे-क़रारी में कटी