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शेर
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
दोनों तेरी जुस्तुजू में फिरते हैं दर दर तबाह
दैर हिन्दू छोड़ कर काबा मुसलमाँ छोड़ कर
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग
जावेद अख़्तर
शेर
अपने घरों से दूर बनों में फिरते हुए आवारा लोगो
कभी कभी जब वक़्त मिले तो अपने घर भी जाते रहना