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शेर
हमारी आँखों में बस गया है अजीब पंजाब आँसुओं का
इधर से रावी चला उधर से चनाब तय्यार हो रहा है
फ़रहत एहसास
शेर
जो अपनी नींद की पूँजी भी कब की खो चुकी हैं
उन्हीं आँखों में हम इक ख़्वाब रखना चाहते हैं
मंज़ूर हाशमी
शेर
कल 'नज़ीर' उस ने जो पूछा ब-ज़बान-ए-पंजाब
नेह विच मेंडी ए की हाल-ए-तुसादा वे मियाँ
नज़ीर अकबराबादी
शेर
ये सवाद-ए-शहर और ऐसा कहाँ हुस्न-ए-मलीह
शश-जिहत में मुल्क देखा ही नहीं पंजाब सा
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
मैं शौक़-ए-वस्ल में क्या रेल पर शिताब आया
कि सुब्ह हिन्द में था शाम पंज-आब आया
मर्दान अली खां राना
शेर
किस तरह पहुँचूँ मैं अपने यार किन पंजाब में
हो गया राहों में चश्मों से दो-आबा बे-तरह