aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "qaahir"
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने काउसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलताकहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाममुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
आज देखा है तुझ को देर के बअ'दआज का दिन गुज़र न जाए कहीं
कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थीकुछ मुझे भी ख़राब होना था
आरज़ू है कि तू यहाँ आएऔर फिर उम्र भर न जाए कहीं
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हमठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक करआदत इस की भी आदमी सी है
इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँकहीं ऐसा न हो जाए कहीं ऐसा न हो जाए
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गईआओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सहीहो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसेंइतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में
बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदाक़हर होता जो बा-वफ़ा होता
एक ही हादसा तो है और वो ये कि आज तकबात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई
ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँक्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया
कहीं वो आ के मिटा दें न इंतिज़ार का लुत्फ़कहीं क़ुबूल न हो जाए इल्तिजा मेरी
फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ मेंमिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी
क्यूँ पशेमाँ हो अगर वअ'दा वफ़ा हो न सकाकहीं वादे भी निभाने के लिए होते हैं
ज़िंदगी इक आँसुओं का जाम थापी गए कुछ और कुछ छलका गए
अपने सामान को बाँधे हुए इस सोच में हूँजो कहीं के नहीं रहते वो कहाँ जाते हैं
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