aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "qaalii.n"
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलताकहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
आज देखा है तुझ को देर के बअ'दआज का दिन गुज़र न जाए कहीं
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हमठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
आरज़ू है कि तू यहाँ आएऔर फिर उम्र भर न जाए कहीं
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक करआदत इस की भी आदमी सी है
इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँकहीं ऐसा न हो जाए कहीं ऐसा न हो जाए
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गईआओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सहीहो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिएज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है
इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसेंइतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में
ज़ालिम था वो और ज़ुल्म की आदत भी बहुत थीमजबूर थे हम उस से मोहब्बत भी बहुत थी
कहीं वो आ के मिटा दें न इंतिज़ार का लुत्फ़कहीं क़ुबूल न हो जाए इल्तिजा मेरी
फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ मेंमिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी
क्यूँ पशेमाँ हो अगर वअ'दा वफ़ा हो न सकाकहीं वादे भी निभाने के लिए होते हैं
अपने सामान को बाँधे हुए इस सोच में हूँजो कहीं के नहीं रहते वो कहाँ जाते हैं
बात सुनाए न लगी दिल की बुझाए न कली दिल की खिलाए न ग़म-ओ-रंज घटाए न रह-ओ-रस्मबढ़ाए जो कहो कुछ तो ख़फ़ा हो कहे शिकवे की ज़रूरत जो यही है तो न चाहो जो न
न जाने रूठ के बैठा है दिल का चैन कहाँमिले तो उस को हमारा कोई सलाम कहे
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न थाइस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गएऔर मैं था कि सच बोलता रह गया
किसी कली किसी गुल में किसी चमन में नहींवो रंग है ही नहीं जो तिरे बदन में नहीं
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