aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "rahguzar"
न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँइक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैंअजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं
हम जो पहुँचे तो रहगुज़र ही न थीतुम जो आए तो मंज़िलें लाए
नज़र में दूर तलक रहगुज़र ज़रूरी हैकिसी भी सम्त हो लेकिन सफ़र ज़रूरी है
चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सहीजला के अपना दिया रौशनी मकान में ला
जाने कैसा रिश्ता है रहगुज़र का क़दमों सेथक के बैठ जाऊँ तो रास्ता बुलाता है
कौन ताक़ों पे रहा कौन सर-ए-राहगुज़रशहर के सारे चराग़ों को हवा जानती है
यूँ तेरी रहगुज़र से दीवाना-वार गुज़रेकाँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बारऐ काश जानता न तिरे रह-गुज़र को मैं
ज़िंदगी यूँ भी गुज़र ही जातीक्यूँ तिरा राहगुज़र याद आया
दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहींबैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यूँ
आ ही गए हैं ख़्वाब तो फिर जाएँगे कहाँआँखों से आगे उन की कोई रहगुज़र नहीं
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा हैनई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी
इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुए आसमाँ से हमहट कर चले हैं रहगुज़र-ए-कारवाँ से हम
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलोबहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो
शफ़क़ से हैं दर-ओ-दीवार ज़र्द शाम-ओ-सहरहुआ है लखनऊ इस रहगुज़र में पीलीभीत
आप जिस रह-गुज़र-ए-दिल से कभी गुज़रे थेउस पे ता-उम्र किसी को भी गुज़रने न दिया
तिरा आस्ताँ जो न मिल सका तिरी रहगुज़र की ज़मीं सहीहमें सज्दा करने से काम है जो वहाँ नहीं तो कहीं सही
मैं इक शजर की तरह रह-गुज़र में ठहरा हूँथकन उतार के तू किस तरफ़ रवाना हुआ
हज़ार राह चले फिर वो रहगुज़र आईकि इक सफ़र में रहे और हर सफ़र से गए
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