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शेर
अभी आते नहीं उस रिंद को आदाब-ए-मय-ख़ाना
जो अपनी तिश्नगी को फ़ैज़-ए-साक़ी की कमी समझे
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
तिश्ना-लबी रहीन-ए-मय-ए-तल्ख़ है तो क्या
शीरीनी-ए-हयात की लज़्ज़त कहाँ से लाएँ
ताबिश हमदून उस्मानी
शेर
आख़िर गिल अपनी सर्फ़-ए-दर-ए-मय-कदा हुई
पहुँचे वहाँ ही ख़ाक जहाँ का ख़मीर हो
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
शेर
लग़्ज़िश-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे
फिर न टूटे कोई पैमाना ख़ुदा ख़ैर करे
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
शेर
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया