aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ramzaan"
आप इधर आए उधर दीन और ईमान गएईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए
फिर सोच के ये सब्र किया अहल-ए-हवस नेबस एक महीना ही तो रमज़ान रहेगा
ग़म के पीछो रास्त कहते हैं कि शादी होवे हैहज़रत-ए-रमज़ां गए तशरीफ़ ले अब ईद है
यूँ तो मरने के लिए ज़हर सभी पीते हैंज़िंदगी तेरे लिए ज़हर पिया है मैं ने
तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िले क्यूँ लुटेतिरी रहबरी का सवाल है हमें राहज़न से ग़रज़ नहीं
कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुईकि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए
आँख रहज़न नहीं तो फिर क्या हैलूट लेती है क़ाफ़िला दिल का
न जाने किस की हमें उम्र भर तलाश रहीजिसे क़रीब से देखा वो दूसरा निकला
वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करोहौसले मुश्किलों में पलते हैं
भला हुआ कि कोई और मिल गया तुम सावगर्ना हम भी किसी दिन तुम्हें भुला देते
जाने क्यूँ इक ख़याल सा आयामैं न हूँगा तो क्या कमी होगी
नज़र में दूर तलक रहगुज़र ज़रूरी हैकिसी भी सम्त हो लेकिन सफ़र ज़रूरी है
किस से उम्मीद करें कोई इलाज-ए-दिल कीचारागर भी तो बहुत दर्द का मारा निकला
नमाज़ अपनी अगरचे कभी क़ज़ा न हुईअदा किसी की जो देखी तो फिर अदा न हुई
ये चराग़ जैसे लम्हे कहीं राएगाँ न जाएँकोई ख़्वाब देख डालो कोई इंक़िलाब लाओ
इस तरह रहबर ने लूटा कारवाँऐ 'फ़ना' रहज़न को भी सदमा हुआ
निकाले गए इस के मअ'नी हज़ारअजब चीज़ थी इक मिरी ख़ामुशी
'मजरूह' क़ाफ़िले की मिरे दास्ताँ ये हैरहबर ने मिल के लूट लिया राहज़न के साथ
कहते नहीं हैं हाल किसी राज़दाँ से हमवाक़िफ़ हुए हैं जब से फ़रेब-ए-जहाँ से हम
जाते जाते दिया इस तरह दिलासा उस नेबीच दरिया में कोई जैसे किनारा निकला
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