aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ruuh"
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों मेंनज़र आती है उन को अपनी मंज़िल आसमानों में
मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछोमिरा मज्लिसी तबस्सुम मिरा तर्जुमाँ नहीं है
जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुईबदन पुराना हुआ रूह भी पुरानी हुई
मिलती है ग़म से रूह को इक लज़्ज़त-ए-हयातजो ग़म-नसीब है वो बड़ा ख़ुश-नसीब है
सोचो तो सिलवटों से भरी है तमाम रूहदेखो तो इक शिकन भी नहीं है लिबास में
उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखारूह तक आ गई तासीर मसीहाई की
तमाम जिस्म की उर्यानियाँ थीं आँखों मेंवो मेरी रूह में उतरा हिजाब पहने हुए
आख़िर को रूह तोड़ ही देगी हिसार-ए-जिस्मकब तक असीर ख़ुशबू रहेगी गुलाब में
रास्ता दे कि मोहब्बत में बदन शामिल हैमैं फ़क़त रूह नहीं हूँ मुझे हल्का न समझ
बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ीमिरे साथ मेरा बदन भी तो है
तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुपतू अपने अंदाज़ में चुप है मैं अपने अंदाज़ में चुप
किसी माशूक़ का आशिक़ से ख़फ़ा हो जानारूह का जिस्म से गोया है जुदा हो जाना
रूह को रूह से मिलने नहीं देता है बदनख़ैर ये बीच की दीवार गिरा चाहती है
बा'द मरने के भी अरमान यही है ऐ दोस्तरूह मेरी तिरे आग़ोश-ए-मोहब्बत में रहे
दिल को सुकून रूह को आराम आ गयामौत आ गई कि दोस्त का पैग़ाम आ गया
वो मिरी रूह की उलझन का सबब जानता हैजिस्म की प्यास बुझाने पे भी राज़ी निकला
बिछड़ के तुझ से मुझे है उमीद मिलने कीसुना है रूह को आना है फिर बदन की तरफ़
तेरे नग़्मों से है रग रग में तरन्नुम पैदाइशरत-ए-रूह है ज़ालिम तिरी आवाज़ नहीं
मैं जानता हूँ तिरी रूह की तलब जानाँतुझे बदन की तरफ़ से नहीं छुऊँगा मैं
कौन कहता है मुलाक़ात मिरी आज की हैतू मिरी रूह के अंदर है कई सदियों से
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