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शेर
हुस्न भी कम्बख़्त कब ख़ाली है सोज़-ए-इश्क़ से
शम्अ भी तो रात भर जलती है परवाने के साथ
बिस्मिल सईदी
शेर
लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शो'ला अयाँ न हो
जल बुझिए इस तरह से कि मुतलक़ धुआँ न हो
रजब अली बेग सुरूर
शेर
ऐ सोज़-ए-इश्क़-ए-पिन्हाँ अब क़िस्सा मुख़्तसर है
इक्सीर हो चला हूँ इक आँच की कसर है
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
क्या ख़बर थी इस क़दर पुर-कैफ़ नग़्मे हैं निहाँ
ज़िंदगी को एक साज़-ए-बे-सदा समझा था मैं
मुसतफ़ा राही
शेर
मिरी ज़िंदगी का महवर यही सोज़-ओ-साज़-ए-हस्ती
कभी जज़्ब-ए-वालहाना कभी ज़ब्त-ए-आरिफ़ाना
फ़ारूक़ बाँसपारी
शेर
खुलता है क़ुफ़्ल-ए-ऐश मिरा इस से 'मुसहफ़ी'
जिस के इज़ार-बंद में छोटी कलीद है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ज़ाहिदा ज़ैदी
शेर
तंगी-ए-ऐश में मुमकिन नहीं तर्क-ए-लज़्ज़त
सूखे टुकड़े भी तो फ़ाक़ों में मज़ा देते हैं