aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sakhi"
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आआ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
जो गुज़ारी न जा सकी हम सेहम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ीमिरे साथ मेरा बदन भी तो है
शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ रोज़-ए-वसलत चू उम्र कोताहसखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ
जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बरआएगी बुलबुल मिरे घर में मुबारकबाद को
वा'दा मुआवज़े का न करता अगर ख़ुदाख़ैरात भी सख़ी से न मिलती फ़क़ीर को
हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नामदेखना उन की फ़रामोशी को मेरी याद को
नय्या बाँधो नदी किनारे सखीचाँद बैराग रात त्याग लगे
बात करने में होंट लड़ते हैंऐसे तकरार का ख़ुदा-हाफ़िज़
लेते हैं समर शाख़-ए-समरवर को झुका करझुकते हैं सख़ी वक़्त-ए-करम और ज़ियादा
अजी फेंको रक़ीब का नामान इबारत भली न अच्छा ख़त
बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँतुझ में है ढंग यार के लब का
न आशिक़ हैं ज़माने में न माशूक़इधर हम रह गए हैं और उधर आप
रुख़ हाथ पे रक्खा न करो वक़्त-ए-तकल्लुमहर बात में क़ुरआन उठाया नहीं जाता
तीस दिन यार अब न आएगाइस महीने का नाम ख़ाली है
देखो क़लई खुलेगी साफ़ उस कीआईना उन के मुँह चढ़ा है आज
दफ़्न हम हो चुके तो कहते हैंइस गुनहगार का ख़ुदा-हाफ़िज़
ज़िंदगी तक मिरी हँस लीजिए आपफिर मुझे रोइएगा मेरे ब'अद
मैं तुझे फिर ज़मीं दिखाऊँगादेख मुझ से न आसमान बिगड़
रहते काबे में अकेले क्या हमदिल लगाने को सनम भी तो न थे
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