aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sarvat"
सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैंमैं ने कश्ती को उतारा है उसी पानी में
भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारामैं हार गया जंग मगर दिल नहीं हारा
जिसे अंजाम तुम समझती होइब्तिदा है किसी कहानी की
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'लोग कुछ भी कहते हों ख़ुद-कुशी के बारे में
मिट्टी पे नुमूदार हैं पानी के ज़ख़ीरेइन में कोई औरत से ज़ियादा नहीं गहरा
सोचता हूँ कि उस से बच निकलूँबच निकलने के ब'अद क्या होगा
पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख करइक कशिश महताब जैसी चेहरा-ए-दिलबर में थी
मिलना और बिछड़ जाना किसी रस्ते परइक यही क़िस्सा आदमियों के साथ रहा
ये जो रौशनी है कलाम में कि बरस रही है तमाम मेंमुझे सब्र ने ये समर दिया मुझे ज़ब्त ने ये हुनर दिया
दो ही चीज़ें इस धरती में देखने वाली हैंमिट्टी की सुंदरता देखो और मुझे देखो
'सरवत' तुम अपने लोगों से यूँ मिलते होजैसे उन लोगों से मिलना फिर नहीं होगा
कौन तन्हाई का एहसास दिलाता है मुझेये भरा शहर भी तन्हा नज़र आता है मुझे
बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ीमिरे साथ मेरा बदन भी तो है
ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजेकाम इस पल है तिरे जिस्म की उर्यानी से
बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म हैऔर फिर शाएरी तो कड़ा जुर्म है
मैं आग देखता था आग से जुदा कर केबला का रंग था रंगीनी-ए-क़बा से उधर
शहज़ादी तुझे कौन बताए तेरे चराग़-कदे तककितनी मेहराबें पड़ती हैं कितने दर आते हैं
हर सुब्ह निकलना किसी दीवार-ए-तरब सेहर शाम किसी मंज़िल-ए-ग़मनाक पे होना
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बामये कौन गया मेरे बराबर से निकल कर
हुस्न-ए-बहार मुझ को मुकम्मल नहीं लगामैं ने तराश ली है ख़िज़ाँ अपने हाथ से
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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