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शेर
न तुम आए न चैन आया न मौत आई शब-ए-व'अदा
दिल-ए-मुज़्तर था मैं था और थीं बे-ताबियाँ मेरी
फ़य्याज़ हाशमी
शेर
ज़ाहिद मसूद
शेर
गदा-ए-शाह-ए-नजफ़ हूँ सो मेरे कासे से
जहाँ को चर्ख़-ए-सुख़न के सभी पते मिलेंगे
मुज़म्मिल अब्बास शजर
शेर
शह-ए-बे-ख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगी
न ख़िरद की बख़िया-गरी रही न जुनूँ की पर्दा-दरी रही
सिराज औरंगाबादी
शेर
तो शराफ़तों का मक़ाम है तो सदाक़तों का दवाम है
जहाँ फ़र्क़-ए-शाह-ओ-गदा नहीं तिरे दीन का वो निज़ाम है
नासिर शहज़ाद
शेर
'जामी' मैं तसव्वुर में वहाँ पहुँचा हुआ हूँ
हाँ मुझ को मिरे शाह-ए-नजफ़ देख रहे हैं
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
शेर
यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न
वाजिब-उल-क़त्ल मोहब्बत के गुनहगार हैं सब
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
मिरे चेहरे उपर की शाह-ए-ख़ूबाँ ने नज़र सानी
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
जब नबी-साहिब में कोह-ओ-दश्त से आई बसंत
कर के मुजरा शाह-ए-मर्दां की तरफ़ धाई बसंत