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शेर
मेरा पिंजरा खोल दिया है तुम भी अजीब शिकारी हो
अपने ही पर काट लिए हैं मैं भी अजीब परिंदा हूँ
तरकश प्रदीप
शेर
इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है
अख़्तर शीरानी
शेर
शिकस्त ओ फ़त्ह मियाँ इत्तिफ़ाक़ है लेकिन
मुक़ाबला तो दिल-ए-ना-तवाँ ने ख़ूब किया