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शेर
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इशरत-ए-शबाना
मुईन अहसन जज़्बी
शेर
वो जो शा'इरी का सबब हुआ वो मु'आमला भी 'अजब हुआ
मैं ग़ज़ल सुनाऊँ हूँ इस लिए कि ज़माना उस को भुला न दे
कलीम आजिज़
शेर
मुख़्तसर ये है हमारी दास्तान-ए-ज़िंदगी
इक सुकून-ए-दिल की ख़ातिर उम्र भर तड़पा किए
मुईन अहसन जज़्बी
शेर
तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं