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शेर
अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-तअल्लुक़ कर लो पर इक बात कहें
कल तुम इन को याद करोगे कल तुम इन्हें पुकारोगे
इब्न-ए-इंशा
शेर
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में
अल्लामा इक़बाल
शेर
परेशाँ हो के दिल तर्क-ए-तअल्लुक़ पर है आमादा
मोहब्बत में ये सूरत भी न रास आई तो क्या होगा
उनवान चिश्ती
शेर
दिल पर चोट पड़ी है तब तो आह लबों तक आई है
यूँ ही छन से बोल उठना तो शीशे का दस्तूर नहीं
अंदलीब शादानी
शेर
शमीम जयपुरी
शेर
शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल
अपने दिल को सख़्त कर के रिश्ता-ए-इंकार तोड़
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
बुझा के रख गया है कौन मुझ को ताक़-ए-निस्याँ पर
मुझे अंदर से फूंके दे रही है रौशनी मेरी
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
शेर
लिख लिख के 'नज़ीर' इस ग़ज़ल-ए-ताज़ा को ख़ूबाँ
रख लेंगे किताबों में ये रंग-ए-पर-ए-ताएर
नज़ीर अकबराबादी
शेर
तो भी उस तक है रसाई मुझे एहसाँ दुश्वार
दाम लूँ गर पर-ए-जिब्रील बरा-ए-पर्वाज़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
शुक्रिया वाइज़ जो मुझ को तर्क-ए-मय की दी सलाह
ग़ौर मैं इस पर करूँगा होश में आने के बाद
जलील मानिकपूरी
शेर
गुफ़्तुगू के ख़त्म हो जाने पर आया ये ख़याल
जो ज़बाँ तक आ नहीं पाया वही तो दिल में था
अली जवाद ज़ैदी
शेर
फ़साना-दर-फ़साना फिर रही है ज़िंदगी जब से
किसी ने लिख दिया है ताक़-ए-निस्याँ पर पता अपना