aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ubhaar"
वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगाकिरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
किस क़दर यादें उभर आई हैं तेरे नाम सेएक पत्थर फेंकने से पड़ गए कितने भँवर
भूले-बिसरे हुए ग़म फिर उभर आते हैं कईआईना देखें तो चेहरे नज़र आते हैं कई
मेरे माथे पे उभर आते थे वहशत के नुक़ूशमेरी मिट्टी किसी सहरा से उठाई गई थी
न टूट कर इतना हम को चाहो कि रो पड़ें हमदबी दबाई सी चोट इक इक उभर गई है
शफ़क़ हूँ सूरज हूँ रौशनी हूँसलीब-ए-ग़म पर उभर रहा हूँ
शेर क्या है आह है या वाह हैजिस से हर दिल की उभर आती है चोट
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होताअगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओमिरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिलाअगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैंकि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैंहम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं
तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त होमैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो
अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिरचलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए
बिगाड़ कर बनाए जा उभार कर मिटाए जाकि मैं तिरा चराग़ हूँ जलाए जा बुझाए जा
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगेमैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आतातुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगीतू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर'फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
हर एक रात को महताब देखने के लिएमैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए
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