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शेर
जवानी की है आमद शर्म से झुक सकती हैं आँखें
मगर सीने का फ़ित्ना रुक नहीं सकता उभरने से
अकबर इलाहाबादी
शेर
तह में दरिया-ए-मोहब्बत के थी क्या चीज़ 'अज़ीज़'
जो कोई डूब गया उस को उभरने न दिया