aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "uljhaane"
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने परजो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने मेंएक पुराना ख़त खोला अनजाने में
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझामुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है
क्या क्या हुआ है हम से जुनूँ में न पूछिएउलझे कभी ज़मीं से कभी आसमाँ से हम
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँखिलौने दे के बहलाया गया हूँ
हज़ार तरह के सदमे उठाने वाले लोगन जाने क्या हुआ इक आन में बिखर से गए
अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इंसान के बस का काम नहींफ़ैज़ान-ए-मोहब्बत आम सही इरफ़ान-ए-मोहब्बत आम नहीं
हम लोग न उलझे हैं न उलझेंगे किसी सेहम को तो हमारा ही गरेबान बहुत है
कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशनजब तक उलझे न काँटों से दामन
साथी मिरे कहाँ से कहाँ तक पहुँच गएमैं ज़िंदगी के नाज़ उठाने में रह गया
इस रेंगती हयात का कब तक उठाएँ बारबीमार अब उलझने लगे हैं तबीब से
वो मिरी रूह की उलझन का सबब जानता हैजिस्म की प्यास बुझाने पे भी राज़ी निकला
कब तक नजात पाएँगे वहम ओ यक़ीं से हमउलझे हुए हैं आज भी दुनिया ओ दीं से हम
उस के जाने का यक़ीं तो है मगर उलझन में हूँफूल के हाथों से ये ख़ुश-बू जुदा कैसे हुई
एक क़त्ताला चाहिए हम कोहम ये एलान-ए-आम कर रहे हैं
दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई हैउलझे दामन को छुड़ाते नहीं झटका दे कर
कीजे इज़हार-ए-मोहब्बत चाहे जो अंजाम होज़िंदगी में ज़िंदगी जैसा कोई तो काम हो
उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ मेंलो आप अपने दाम में सय्याद आ गया
उस ने सुन कर बात मेरी टाल दीउलझनों में और उलझन डाल दी
हम भी इक शाम बहुत उलझे हुए थे ख़ुद मेंएक शाम उस को भी हालात ने मोहलत नहीं दी
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